Friday, March 19, 2021

सत्य ही सर्वोपरि धर्म।


सत्य ही सर्वोपरि धर्म
एक दिन पार्वती जी भगवान शंकर के पास बैठी सत्संग कर रही थी। उन्होंने पूछ लिया, आपकी दृष्टि से सबसे बड़ा धर्म क्या है? शंकर जी ने जवाब दिया - सबसे बड़ा धर्म है सत्य। सत्य पर सदैव अडिग रहने में कल्याण है और सबसे बड़ा अधर्म असत्य है।

शंकर जी ने कहा, सत्य का त्याग कर देने वाला विभिन्न दुर्गुणों का शिकार बनकर अपना जीवन कष्टमय बना लेता है।

जबकि सत्य का पालन करने वाला ना कभी भयभीत होता है और ना ही किसी प्रकार के प्रपंच और लोभ - लालच के आकर्षण में फंसता है। 

मानुष को चाहिए की वह अपने शुभ अथवा अशुभ कर्मों में स्वय को ही साक्षी माने। मन, वाणी और क्रिया द्वारा कभी गलत या पाप कर्म करने की इच्छा न करे।

यह ध्यान रखना चाहिए की जीव जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल पाता है। अपने किए का फल उसे स्वय  ही भोगना पड़ता है।

उन्होंने कहा, तृष्णा के समान कोई दुख और त्याग ने समान कोई सुख नहीं है।

समस्त कामनाओं का परित्याग कर देने वाला मानुष ही ब्रह्म भाव को प्राप्त करता है।

यह महान आशचर्या की बात है की मानुष की इंद्रियां प्रतिशन जीर्ण हो रही है और उनकी आयु नष्ट हो रही है।

फिर भी वह आकांशायो में, प्रपंच में लगे रहकर अपना समय गवा रहे है।

सूरज प्रकाश

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